मेरी दस
साल की बेटी
ने टी.वी.
देखते हुए मुझसे
पूछा, "पापा ये
सिक्युलेरिज्म क्या होता
है और लोग
ऐसा क्यों कह
रहे हैं कि
सिक्युलेरिज्म खतरे में
है ।"
सवाल मुश्किल था, पर जवाब देना जरूरी था । जब टी.वी. पर रोज़ सिक्युलेरिज्म की बातें हो रही हों, तो बच्चों के इस सवाल को कब तक टाला जा सकता है । मैंने जवाब देने की बजाय उससे पूछा, "तुम्हारे स्कूल में सब बच्चे एक ही तरह का यूनिफार्म पहन कर आते हैं, पर जिस दिन पी. टी.एम. होती है, उस दिन सब अलग-अलग तरह के और रंग-बिरंगे कपड़ों में आते हैं । आपको किस दिन ज्यादा अच्छा लगता है ?"
उसने जवाब
दिया, " पी. टी.एम. के
दिन ।"
मैंने पूछा, "अगर
उस दिन भी
एक ही रंग
और स्टाइल के
कपडे पहने पड़ते
तो?"
"तो मज़ा
नहीं आता ।"
सवाल मुश्किल था, पर जवाब देना जरूरी था । जब टी.वी. पर रोज़ सिक्युलेरिज्म की बातें हो रही हों, तो बच्चों के इस सवाल को कब तक टाला जा सकता है । मैंने जवाब देने की बजाय उससे पूछा, "तुम्हारे स्कूल में सब बच्चे एक ही तरह का यूनिफार्म पहन कर आते हैं, पर जिस दिन पी. टी.एम. होती है, उस दिन सब अलग-अलग तरह के और रंग-बिरंगे कपड़ों में आते हैं । आपको किस दिन ज्यादा अच्छा लगता है ?"
"आपके स्कूल
के बगीचे में
अलग-अलग किस्म
के फूल, पौधे
हैं । अगर
सारे फूल, पौधे
एक जैसे और
एक ही रंग
के होते, तो
आपको कैसा लगता
?"
"बहुत बोरिंग
लगता । मुझे
तो रंग-बिरंगे
लाल, पीले, बैंगनी,
नीले सब तरह
के फूल अच्छे
लगते हैं ।"
मैंने सवाल बदला,
"हम छुट्टी के दिन
दिल्ली में अलग-अलग मॉन्यूमेंट्स
देखने जाते हैं
। अगर ये
सारे मॉन्यूमेंट्स एक
जैसे होते तो...
?"
"फिर घूमने
में कहाँ मज़ा
आता ।"
"अगर सारे
त्यौहार, होली, दीवाली, लोहड़ी,
ईद, क्रिसमस एक
ही तरीके से
मनाये जाते तो...
? अगर सभी में
एक ही तरीके
का प्रसाद होता
तो... ?"
उसने बुरा
सा मुंह बनाया,
"फिर क्या मजा
आता । मुझे
तो होली की
गुजिया भी अच्छी
लगती है और
दीवाली के खील
बतासे भी ।
ईद के दिन
मम्मी के स्कूल
वाली जरीना मैम
की सिवइयां भी
अच्छी लगती है
और पड़ोस वाली
परेरा आंटी क्रिसमस
वाला केक भी
।"
मैंने पूछा, "अगर
सभी त्योहारों में
एक ही भगवान
की पूजा होती
। अगर शिव
जी, रामचन्द्र जी,
दुर्गा माँ, लक्ष्मी
जी, गणेश जी,
सांईराम सभी के
मंदिरों में सिर्फ
एक ही भगवान
होते....अगर पूजा
करने के लिए
मंदिर, गुरुद्वारे, गिरजे या
मस्जिद की बजाए
सिर्फ मंदिर या
मस्जिद या गिरजे
होते, और वो
भी एक ही
डिजाइन और एक
ही साइज़ के,
तो… ?"
और फिर
मैंने अपना आखिरी
सवाल पूछा, "सोचो,
अगर दुनिया में
वैरायटी न होती
- न कपड़ों की,
न रंगों की,
न फूलों की,
इमारतों, पूजा करने
के तरीकों की,
भगवांनों की, तो
क्या ये दुनिया
खूबसूरत होती ?"
"बिल्कुल नहीं" उसने
जोर देकर कहा,
"फिर तो सब
कुछ बहुत बोरिंग
होता ।" (बच्चों
के लिए इस 'बोरिंग' शब्द का अर्थ बहुत
व्यापक होता है)
मैंने कहा, "तो
बेटा, इस वैराइटी
को प्यार करने
का नाम ही
सिक्युलेरिज्म हैं ।
यह सिर्फ धर्मऔर राजनीति का मामला
ही नहीं है
। यह हमारा अपने
आसपास मौजूद विभिन्नता
को स्वीकार करने
और उसे सवांरने
की भावना का
नाम है ।
कुछ लोग चाहते
हैं कि दुनिया
में ये वैराइटी
न रहे, पर
ऐसा हो नहीं
पाता, क्योंकि इस
वैराइटी को चाहने
वाले हम जैसे
लोगों की संख्या
कहीं ज्यादा है
। इसलिये दुनिया
में हमेशा वैराइटी
रहती है और
सिक्युलेरिज्म हमेशा ज़िंदा रहता
है ।"