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Monday, September 28, 2009

गाँव में टी.वी.

इस बार जो गाँव गया
दस साल बाद,
तो पाया
पचास परिवार वाले छोटे से पहाडी गाँव में,
तीसेक छोटे-बड़े , काले- सफ़ेद टीवी भी थे
दो- चार रंगीन टीवीयों के अलावा
डिश वाले घरों से
केबल कनेक्शन लिए हुए
बाखबर होते हुए
एक नयी दुनिया से, दुनिया
जिसमे इराक की बर्बादी भी है,
अमेरिका का कैटरीना तूफ़ान भी ।

उस रात
कैटरीना से एक दिन पहले
गाँव के रिश्ते एक विधवा चाची की गाय
शिकार हुयी बाघ का,
हमने देखे
बाघ के नाखूनों के निशान
गाय की गर्दन पर
निशान, जो अब दिखेंगे
उन छोटे भाई-बहनों के पेट पर ।
चाची के दुःख में सब दुखी थे
और रात में सबने बांधे अपने बाडे
ज्यादा कस कर ।

बाघ के आने की ख़बर फिर मिली, अगले दिन
इस बार टीवी पर
ढेरों तस्वीरों के साथ ।

वो तूफ़ान बन कर आया था
अमेरिका के न्यू ओरलेंस राज्य पर
पानी के सैलाब में अपना वहशीपन दिखाता
हजारों-हज़ार चाचियों की गाये हड़पते हुए
वो छोड़ गया
नाखूनों के निशान
उन छोटे भाई बहनों के पेट पर ।
गाँव के सब लोग दुखी थे
वो महसूस करते थे
गरीब अश्वेतों का दर्द,
बच्चों और बूदों के पीड़ा
वो समझते थे
मलबे से लाशों का उठाना
लाशों के बीच जीवित रह पाना
उन्होने भोगा था, वो सब
उस छोटे से पहाडी गाँव में ।

चाची रो रही थी आज रात,
अपने सूने बाडे को बांधते, अकेले
आज कोई नही था
उसके साथ रोने वाला
उसकी गाय की मौत पर ।

बगल के घरों में टीवी दिखा रहा था
तूफ़ान की तबाही के मंज़र, कई-कई कोनो से ।

इस बार कैटरीना का असर कहीं गहरा था
हमारे गाँव पर ।

Saturday, September 5, 2009

साहब की दहशत

पहला झटका दो महीने पहले साहब के पी.एस। को लगा, जब वो अपनी छुट्टी की अर्जी लेकर साहब के पास गया। साहब ने गुप्ता से सिर्फ इतना पूछा, वापस कब आओगे? ये एक नयी बात थी। हर बार वो दस सवाल करते थे- छुट्टी क्यों चाहिये? कहां जाना है? क्यों जाना है? इतने दिन की छुट्टी लेकर क्या करोगे? कुछ दिन कम करो! मोबाइल बंद मत रखना! और भी दस सवाल और दस हिदायतें। पांच दिन की छुट्टी मांगो तो तीन दिन की मिलेगी, इसलिए गुप्ता हमेशा दो-चार दिन की फालतू छुट्टी मांगता था। पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। साहब ने उससे सिर्फ वापस आने का दिन पूछा।
एक बात और नयी हुई। उन्होंने छुट्टी की अर्जी पढ़ते वक्त उसे एक बार घूरकर देखा, कुछ इस तरह से कि वो घबरा गया। ये घूरने का अंदाज नया था और डरावना भी। छुट्टी से वापसी के बारे में उसका जवाब सुनकर साहब हल्के से मुस्कुराये, होंठ टेढ़ा करके, फिर उन्होंने उसे अजीब ढंग से घूरा। इससे पहले भी वो उसे कई बार घूर चुके थे, पर ये तेवर पहली बार थे।
साहब के फालतू सवाल न पूछने और यूं घूरने का कारण उसे समझ नहीं आया। वो बस इतना अंदाज लगा पाया कि साहब नाराज हैं, पर क्यों नाराज हैं, ये उसे नहीं मालूम था। तीन दिन की छुट्टी के लिए उसने पांच दिन की अर्जी दी थी, पर अब वह पांच दिन की छुट्टी मिलने के बावजूद खुश नहीं हो पा रहा था।
दसेक मिनट के बाद पाठक जी साहब के पास फाइल लेकर गये। जब वो वापस आये तो उनका चेहरा देखकर गुप्ता समझ गया कि उनका हाल भी अपने जैसा है।
"बात क्या है पाठक जी?"
" यार कुछ समझ नहीं रहा। साहब शायद नाराज हैं।"
" कुछ गड़बड़ कर दी होगी आप लोगों ने।" गुप्ता ने आरोप के सहारे उन्हें टटोलना चाहा।
"नहीं यार, ऐसी तो कोई गड़बड़ नहीं हुई, फिर भी मैं बाकी लोगों से पूछ लेता हूं।"
" वैसे कुछ कहा साब ने आपको?"
" कहा तो कुछ नहीं, बस फाइल लेते समय अजीब ढंग से घूर रहे थे।"
" घूरते तो वो रहते ही हैं, इसमें नयी बात क्या है?" गुप्ता ने यूं दिखाया मानो उसे कुछ मालूम ही न हो।
"नहीं यार, वो आंखे कुछ और ही कह रही थीं।"
" तो फिर पता करो बात क्या है। मुझे पांच दिनों की छुट्टी पर जाना है। कहीं तुम लोगों के चक्कर में मैं न मारा जाऊं।" गुप्ता ने पाठक जी को भेज तो दिया पर उसका दिल कहता था कि नाराजगी दफ्तर वालो की वजह से नहीं है ।
कुछ सोच उसने साहब के ड्राइवर को बुलवा भेजा ।
'शायद उसे कुछ मालूम हो।'
पर उसे भी कुछ मालूम नहीं था। ड्राइवर को तो यह जानकर हैरानी हुई कि साहब नाराज हैं।
"सुबह तो साब ठीक लग रहे थे।"
जब ड्राइवर ने मनाकर दिया तो गुप्ता चिंता में पड़ गया।
छुट्टी के बाद जब वो वापस आया तो भी साहब ने कुछ खास बात नहीं की। "आ गये?" "जी साब।" "ठीक है, बड़े बाबू को जनवरी की मीटिंग वाली फाइल लाने के लिये कह दो।" "जी साब।"
इतने दिनों बाद भी साहब के घूरने के अंदाज में कोई कमी नहीं आयी थी। वही खतरनाक निगाहें। कुछ दिनों में ये सिलसिला आम हो गया। न कोई टोका-टोकी, न कोई डांट-डपट। अगर किसी से कुछ गलती हो गयी, तो कहना कुछ नहीं, सिर्फ फाइल पर गोला बनाकर सामने वाले को घूरने लगना। अगर कहना भी, तो सिर्फ इतना, "क्या है ये?" या "ध्यान कहां है?"
साहब का बदला स्वभाव रहस्य बन चुका था। हर वक्त चिल्लाने वाला अधिकारी अचानक इतना शांत कैसे हो गया। किसी को ऐसा कोई केस ध्यान नहीं आ रहा था जो साहब की नाराजगी का सबब बन सके। निकट भविष्य में ऐसी कोई मीटिंग भी नहीं होने वाली थी, जिसकी तैयारी साहब को चिंता में डालती। रहस्य इसलिये भी बढ़ गया क्योंकि ड्राइवर का कहना था कि घर में कोई गड़बड़ नहीं है। वो गुप्ता की पूछताछ के बाद से अपने आंख-कान खोले बैठा था कि कहीं कोई सुराग हाथ लगे। साहब के चपरासी का भी यही कहना था। वो उस दिन फाइलें लेकर साहब के घर गया था। वहां उसने काफी देर तक माली को कुरेदा, पर कोई फायदा नहीं हुआ। पता चला कि साहब का व्यवहार घर पर पहले जैसा है, न ज्यादा खुश, न ज्यादा दुखी।
"तो फिर कारण क्या है?"
साहब की तबियत भी ठीक-ठाक थी। थोड़ा बहुत गैस की शिकायत पहले से थी, उसके लिये वो अजवाइन और पिसी कालीमिर्च का सेवन कर ही रहे थे। अस्पताल का भी कोई चक्कर हाल फिलहाल में नहीं लगा। वैसे भी डाक्टर को फोन गुप्ता ही करता था। उसने एक दो बार सेहत और फाइलों के बहाने साहब को टटोलना चाहा, पर उन्होंने बिना कुछ बोले उसे घूर कर टाल दिया।
महीना बीतते-बीतते सब लोग थक चुके थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। चूंकि नाराजगी का कारण कोई नहीं जानता था इसलिये नाराजगी की संभावनायें अनन्त थीं और अनन्त थे उनसे डर के कारण। हर कोई अपने काम को लेकर सतर्क था,। कहीं गुस्से की गाज उस पर ही न गिर पड़े । सब मान के चल रहे थे कि ये किसी आने वाले तूफान की शुरुआती शान्ति है । ज्वालामुखी किसी दिन भी फट सकता है ।
कहना न होगा कि दफ्तर में साहब का आतंक आजतक इस तरह नहीं छाया था । उनकी चुप्पी ने वो कर दिखाया जिसे वो चिल्ला कर वो कभी हासिल न कर पाए । गुप्ता देख रहा था कि साहब दफ्तर में छायी घबराहट को भांप चुके हैं और इसका फायदा उठा रहे हैं। इन दिनों गुप्ता को लगने लगा था कि साहब असल में किसी से नाराज हैं ही नहीं। ये उनका स्टाफ से काम लेने का एक नया तरीका है- एक नया परन्तु कारगर तरीका। हर कोई अपने-अपने अंदाज लगाता रहे और कारण समझ न आने पर घबराता जाये। पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं क्योंकि उसे अपनी थ्योरी पर पूरा यकीन नहीं था।
"सा'ब चुप हैं और कारण नदारद। ऐसे में अगर मेरा अंदाजा गलत निकला तो... भैय्या अपना मुंह बन्द रखने में ही भलाई है।" गुप्ता ने खुद से कहा और चुपचाप काम में जुट गया, बाकी लोगों की तरह, अपने साहब की दहशत के साये में।
........सुनील भट्ट
(दैनिक जागरण 'सप्तरंग साप्ताहिक पुनर्नवा' में ३१ अगस्त २००९ को प्रकाशित)

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