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Friday, February 20, 2009

पन्द्रह नम्बर का बेड

थोड़ा सा और हौसला रख लो पिता,
बस थोड़ा सा और
ये रात शीत की
अस्पताल के ठंडे फर्श पर
आपकी आखिरी रात हो, शायद
दरवाजे की झिर्री से आती बर्फीली हवा को
आज भर और बर्दाश्त कर लो पिता।

पांच दिन हमें ही नहीं हुए
पैर के पके घाव वाले मरीज की बगल में लेटा
वो बच्चा भी रोता है
तभी से,
अपनी मां की गोद में, रात भर
ठंड से बिलबिलाता॥

थोड़ा सा और हौसला रख लो पिता,
बस थोड़ा सा और
आठ मरीज जा चुके घरों को अपने
छ: जीत कर,
दो हार कर
नर्स कहती है-
वो पंद्रह नंबर का मरीज
ये रात शीत की
उसके लिए भारी है
वो दर्द नहीं झेल पाएगा
कल ये बेड खाली हो जाएगा।

फिर ये ठंडा फर्श न होगा
न हाड़ कंपाती हवा होगी
गरम गद्दा-कंबल होगा
नरम तकिया होगा
कल वो बेड आपका होगा।
वो पंद्रह नंबर का बेड
वो कोने का बेड
दरवाजे से दूर रखा वो बेड
बस थोड़ा सा और हौसला रख लो पिता,
बस थोड़ा सा और॥

(दैनिक जागरण 'पुनर्नवा' में 12 जनवरी 2007 को प्रकाशित)