जब एक हीरो की फिल्म पिटती है,
तो वो पिटता है, परंतु जब बड़े नेता की रैली पिटती है, तो उस प्रदेश का पार्टी-अध्यक्ष पिटता है | यह ठीक
वैसा ही है कि शाहरुख खान की पिक्चर देखने लोग न आयें और गलती सिनेमा हाल के मालिक
की मानी जाए | पर साहब! अगर आप राजनीति में रुचि रखते हैं तो
मानेंगे कि यहां तो ऐसे ही चलता है | गलती केन्द्रीय नेता की
नहीं मानी जाती | कोई नहीं कहता कि दिल्ली के नेता को जनता सुनना
नहीं चाहती, या सुनने लायक नहीं समझती | कोई कह भी नहीं सकता | जो कहेगा, अपने पद से हाथ धोएगा; और पद सबको प्यारा होता है | यह नौकरी करने वालों
का देश है | यहां अफसर, बाबू, नेता, यहां तक कि उद्धोगपति भी अपनी कुर्सी बचाने
के चक्कर में रहते हैं | यहां विरोध करने, न-करने का फैसला सामने वाले का कद देखकर तय किया जाता है |
(शुक्रवार, 1 -15 दिसंबर,2015 )
ऐसे में यह स्वाभाविक था कि जब हमारे पड़ोस वाले
जिले में दिल्ली के नए नेताजी की रैली पिटी, तो हमारे प्रदेश अध्यक्ष रामरतनजी
की बड़ी खिंचाई हुई | उनकी स्वामिभक्ति पर प्रश्नचिह्न लगाए
गए और उनकी सफाई भी नहीं सुनी गई | ऊपर से उन्हें हफ्ते भर
बाद ही दिल्ली बुला लिया गया और बताया गया
कि नेताजी आपको एक मौका और देना चाहते हैं, इसलिए अगले महीने
आपके यहां एक और रैली रखवाई जा रही है | यह सुनकर उनकी हालत ‘काटो तो खून नहीं’ वाली हो गई,
पर बेचारे कुछ कह नहीं पाये | ‘जी हां!
सब इंतजाम हो जाएगा’, ‘आप चिंता न करें, इस बार आप निराश नहीं होंगे’, जैसी फीकी बातें कहकर
खिसियाते हुये आ गए |
‘अब तो मैं गया काम से !’ रामरतनजी
जानते थे कि इतने कम समय में दूसरी रैली उनके यहां जान-बूझकर रखवाई जा रही है | ‘अभी कौन से चुनाव होने वाले हैं, जो ये रैलियां कर रहे हैं |’ पर कहे कौन ? वो देख रहे थे, दिल्ली में बैठे उनके विरोधी उनकी जड़ों में मट्ठा दाल रहे हैं, अपना बदला चुका रहे हैं, पर वो कर क्या सकते थे ? गले का सांप, चाहे फुफकारे या काटे, उतारा नहीं जा सकता था | रैली में तो भीड़ जुटवानी
पड़ेगी, चाहे कुछ भी हो |
यह रैली हमारे जिले में होनी थी, और
हमारे यहां पार्टी की हालत खराब थी | रामरतनजी दिल्ली से
सीधा हमारे यहां आ गए | तुरत-फुरत में सभी विश्वासपात्रों की
मीटिंग बुलाई गई, पर ठोस नतीजा सिर्फ इतना निकल कि रैली के
लिए मैदान, मंच, कुर्सी, पुलिस आदि की व्यवस्था का काम बंट गया | जो असली
समस्या थी, यानि भीड़ जुटाने की थी, उस
पर बातचीत अगले दिन के लिए टाल दी गई |
रात भर में ही पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं में खबर
फैल गई कि दिल्ली के नए नेता की रैली के लिए भीड़ जुटाने के लिए मीटिंग हो रही है |
खबर यह भी फैली कि रामरतनजी की बहुत परेशान हैं और वो कुछ भी करके रैली सफल करवाना
चाहते हैं | इस खबर के फैलते ही छः महीने से सोई पार्टी जाग
गई, सोई उम्मीदें
जाग गईं |
छः महीने पहले ही वो मनहूस घड़ी आई थी,
जब रामरतनजी ने दिल्ली के इन्हीं नए नेताजी के निर्देश हमारे जिले में लागू किए थे
| नतीजा यह निकला कि हरिभाई जैसा ठेठ अव्यवहारिक व्यक्ति
ईमानदार माने जाने के कारण जिला अध्यक्ष बनाया गया और जिला इकाई का साइज़ घटाकर
एक-दहाई कर दिया गया | दिल्ली के नए नेताजी का मानना था कि पार्टी के अंदर अनाप-शनाप लोगों की भीड़
जमा हो रखी है, जिनका एकमात्र काम घूसखोर अफसरों को ब्लैकमेल
करना है | हर ऐरे-गैरे, नत्थू-खैरे को
पार्टी-पद देकर पदों की गरिमा खत्म कर दी गई है |
मोटे-तोंदिल नेताओं की पार्टी का साइज़ भी तोंदिल हो गया है |
उनका पहला वार हमारे प्रदेश पर ही हुआ | हमारे जिले में चार-छः
पुराने लोगों को छोड़कर लगभग सभी पदाधिकारियों की छुट्टी कर दी गई | यही हाल बाकी जिलों में भी हुआ | चारों तरफ हाहाकार
मच गया, परंतु कोई कुछ नहीं बोला क्योंकि समाचार पत्रों व पत्रिकाओं
में नए नेता के इस काम की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही थी | ‘प्रॉपर्टी डीलरों और दलालों से पार्टी को मुक्ति कराने की मुहिम शुरू’, ‘पार्टी को स्लिम-ट्रिम बनाने की कवायद रंग लाई’ जैसी हैड्लाइन्स जब छप रहीं हों, तो चुप्पी लगाना
ही बुद्धिमानी रहती है | एक राजनीतिक दल के नेताओं और
कार्यकर्ताओं में यह खासियत होती है कि वो जरूरत पड़ने पर अपना बड़े-से-बड़ा घाव छुपा
लेते हैं, दर्द पी लेते हैं | राजनीति
में टिके रहने और तरक्की करने के लिए यह जरूरी गुण है | यहां
समय देखकर ज्यादा को कम या कम को ज्यादा बताना
कला माना जाता है | मूर्ख लोग इसे ‘अवसरवादिता’ और सयाने इसे ‘समय
देखकर चलना’ कहते हैं | हमारे जिले में
सभी सयाने थे, सो वो उस वक्त कुछ नहीं बोले | बस उचित समय का इंतज़ार करने लगे |
छः महीने बाद उचित समय अब आया था |
नए नेता की रैली और रामरतनजी की परेशानी एक शुभ संकेत थी | अगले
ही दिन रामरतनजी के होटल के बाहर गाड़ियों की भीड़ लग गई | सभी
नेता-कार्यकर्ता अपने नए-पुराने कुरतों पर कलफ लगाकर पहुँच गए | नेता लोग रामरतनजी ओर लपके तो कार्यकर्ता होटल के रैस्टौरेंट की ओर | राजनीति में फ्री का माल उड़ाना भी एक किस्म का सुख है, जिससे कोई भी कार्यकर्ता अपने-आप को वंचित नहीं कर पाता है | उधर मिलने वालों ने रामरतनजी का मिलने के नाम पर घेराव कर लिया | कुशल-क्षेम के दौर-पर-दौर चलने लगे और ‘आप तो हमसे
नाराज हो गए’, ‘आपने तो हमें पूछना बंद
कर दिया’ जैसे ताने सुना-सुनाकर उन्हें बैचेन कर दिया गया | कई घंटों तक यह सिलसिला चला और शिष्टाचार के हर संभव सलीके से उन्हें जता
दिया गया कि ‘आप तो गए काम से.........!’
रैली का क्या हाल होगा,
यह रामरतनजी को स्पष्ट हो गया | ‘मामला
इतना आसान नहीं है, कुछ तो करना पड़ेगा.....” लंच टाइम तक तय हो गया कि कल एक बड़ी मीटिंग
बुलाई जाएगी, जिसमें पार्टी के सभी नए-पुराने, छोटे-बड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं को बुलाया जाएगा | रामरतनजी
खुद यह मीटिंग लेंगे और इसमें हर नेता-कार्यकर्ता को खुलकर बोलने की आजादी होगी | पत्रकारों व लोकल टीवी वालों को इससे दूर रखा जाएगा | घर की बातें बाहर वालों को क्यों बताएं ?
अगले दिन होटल के विवाह-हाल में पार्टी की मैराथन
मीटिंग हुई और रामरतनजी को समझ आ गया कि असली गड़बड़ कहां हुई | उन्हें
बार-बार याद दिलाया गया कि पहले हमारे यहां एक जिला-अध्यक्ष के अलावा चार उपाध्यक्ष, चार महासचिव, बीस सयुंक्त सचिव और सोलह संगठन
मंत्री थे, जो अब घटकर एक-एक रह गए हैं | बाकी चालीस खुद को बेरोजगार महसूस करते हैं, अनाथ
महसूस करते हैं |
“आप यह बताइये, किसी को पद देने में पार्टी
का क्या घिस जाएगा? अगर चार की बजाय चौदह या चालीस संगठन
मंत्री भी हो गए, तो क्या हर्ज़ है?”
“हमने यह तो नहीं कहा कि पद के साथ हमें ज़िम्मेदारी
भी दो | हमें पद पार्टी के अंदर अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए नहीं चाहिए | वो हमें इसलिए चाहिए ताकि पब्लिक में अपने बारे में एक इम्प्रैशन बना सकें, लोगों को झूठ बोल सकें कि हम पार्टी के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं |”
“जब एक कार्यकर्ता के पास पद होता है तो उसके लिए
पब्लिक में काम करना आसान होता है | वो विजिटिंग कार्ड दिखाकर किसी भी दफ्तर में बेधड़क
घुस सकता है, अपनी गाड़ी पर अपना पदनाम लिखकर पुलिस वाले से
चालान बचा सकता है, टोल और पार्किंग के दस रुपए बचा सकता है, लेटर पैड पर किसी की सिफारिशी चिट्ठी लिखकर अपना दिनभर का खर्चा निकाल
सकता है | और ये सारे काम वो पूरी अकड़ और धौंस के साथ कर
सकता है |”
“आप बड़े नेता नहीं समझते हो, पार्टी-पद
हमारे लिए संजीवनी बूटी है | यह हमारी रोजी-रोटी है | और जरा सोचिए ! उसके बदले में हम पार्टी के लिए कितना कुछ करते हैं | आप बड़े लोग टिकट लेकर विधायक, सांसद बनते हो, मंत्री बनते हो, पर हमें क्या मिलता है - पार्टी का
एक सूखा सा पद, और वो भी अहसान के तौर पर....... मत भूलिए हर
कार्यकर्ता अपने क्षेत्र का छोटा-मोटा नेता होता है, उसके
आगे-पीछे दो-चार समर्थकों की टीम होती है | वो बेचारे भी इतराते
फिरते हैं कि हमारे भैयाजी फलां-फलां हैं | अब अगर पार्टी
उसे यह सूखा सम्मान भी नहीं देगी, तो वो कैसे काम करेगा ?”
“हम कौन सा विधायक का टिकट मांग रहे हैं ?
अरे ! हम तो वार्ड-मेम्बर के लिए भी नहीं कह रहे हैं | क्या
हमें अपनी औकात नहीं मालूम ? चुनाव लड़ने लायक पैसा है किसके
पास ?”
एक ने अपना दुखड़ा सुनाया,
“मेरे मुहल्ले के दरोगा ने मुझे सुना दिया - पहले तो आप पार्टी के उपाध्यक्ष थे, अब निकाल क्यों दिया ? उस दिन के बाद उसने मुझे
पूछना बंद कर दिया | मेरी तो अपने इलाके में पहचान खत्म गई | आप बताइए, मेरे कहने से कौन आयेगा रैली में ?”
“आप दिल्ली वालों को बता दीजिये, दो-चार
रैलियां फ्लॉप होने तक तो वो आपको डांट सकते हैं, पर उसके
बाद बदनामी उन्हीं की होगी | अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को
उपेक्षित करके कोई नेता चल नहीं सकता |”
लुब्बो-लुबाब यह कि सबने तबीयत से अपनी भड़ास निकाली
और जमकर खिंचाई की | रामरतनजी को अच्छे से समझा दिया गया कि अगर रैली
सफल करवानी है तो उन्हें क्या करना होगा | शाम को ही रामरतनजी
ने दिल्ली के नए नेताजी के विशेष सलाहकार से बातचीत की | तय
हुआ कि अभी जो करना है, रामरतनजी अपने स्तर पर कर लें | नेताजी को रैली तक विशेष सलाहकार संभाल लेंगे, पर अगर
फिर भी भीड़ नहीं जुट पाई तो रामरतनजी मामले को खुद निपटाएंगे | उन्होंने रिस्क लेना कबूल किया | उनके पास कोई चारा
नहीं था | रैली के फ्लॉप होने की गारंटी थी | रिस्क लेने से शायद कुछ बात बन जाए |
हफ्ते भर के अंदर ही पार्टी की जिला इकाई में
विस्तार किया गया | रेवड़ियों की तरह पद बांटे गए | पंद्रह उपाध्यक्ष, आठ महासचिव, तीस सयुंक्त सचिव और बीस संगठन मंत्री बनाये गए |
तीन बूढ़े खाँटी नेता, जिनको ठिकाने लगाना था पर लगाया नहीं
जा सका था, उनको मिलाकर एक मार्गदर्शक मण्डल बनाया गया | कुछ पद खाली रखे गए ताकि समय पड़ने पर उन्हें भरा जा सका | उम्मीद की गई कि कुछ लोग इन पदों के लालच में भी वफादार बने रह सकते हैं | पार्टी की तरफ से सभी पदाधिकारियों को उनके नाम व पदनाम वाले लेटरपैड व
विजिटिंग कार्ड दिये गए | आठों महासचिवों के इलाकों में उनके चंगु-मंगु समर्थकों के नाम से बधाई
देते बड़े-बड़े होर्डिंग लटकाए गए | फ्री के प्रचार से
चंगु-मंगु भी खुश हुये | उन्होंने भी इस तरह जताया मानो ये होर्डिंग
उन्हीं की ज़ेब के पैसे से लगे हों | सब खुश हो गए | सब की पहचान का संकट खतम हो गया | पार्टी में नई
जान आ गई |
तीन हफ्ते बाद नेताजी की रैली हुई और खूब सफल हुई |
मैदान के भीतर-बाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा | बसों, ट्रकों, ट्रैक्टरों में लोग भर-भरकर लाये गए | नेताजी प्रसन्न हुये और रामरतनजी ने चैन की सांस ली | और इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि नए नेता की नई नीतियाँ को नकारने और
पुराने पापियों के पनपने के पश्चात ही पार्टी की प्रतिष्ठा समाज में पुनः प्रतिष्ठित
हो पाती है | अब रामरतनजी बाकी जिलों में भी यही काम करना
चाहते हैं, बस विशेष सलाहकार के आदेश की प्रतीक्षा है, जो इन दिनों नए नेता का मन बदलने के प्रयास में लगे हैं |
(शुक्रवार, 1 -15 दिसंबर,2015 )
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